मंगलवार, 24 मार्च 2015

ज्योतिष को “विंडो शापिंग” ना समझें

यात्रा के दौरान या किसी समारोह में जब मैं अपना परिचय एक ज्योतिषी के रूप में देता हूं तब बड़ी रोचक प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं। कुछ लोग इसे अंधविश्वास को बढ़ाने वाली ठग विद्या सिद्ध करने के लिए कुतर्क करने लगते हैं, कुछ परीक्षक की भांति मेरे ज्ञान का परीक्षण करने लगते हैं तो कुछ झट अपनी कुण्डली निकालकर या पास ही पड़े किसी कागज़ पर कुण्डली उकेरकर फ़लित पूछने लगते हैं। मेरा इस प्रकार का व्यवहार करने वाले तमाम महानुभावों से यही निवेदन है कि ज्योतिष कोई “विंडो शापिंग” नहीं है कि आप यूं ही तफ़री के लिए बाज़ार गए वहां निरूद्देश्य दुकानों पर ताक-झांक करते हुए कोई वस्तु पसन्द आ गई और दुकानदार से मोल-भाव जम गया तो खरीद ली अन्यथा आगे बढ़ गए। यहां मुझे रामायण का रावण -वध प्रसंग स्मरण आ रहा है। जब प्रभु श्रीराम ने भूमि पर गिरे अंतिम सांसे गिनते रावण की ओर इशारा कर लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि जाओ इस महापंडित से उपदेश ग्रहण करो तब लक्ष्मण जी रावण के सिर की ओर जाकर खड़े हो गए तब रावण ने यह कहते हुए अपना मुंह फ़ेर लिया कि लक्ष्मण जब हम किसी से कुछ ग्रहण करने जाते हैं तो याचक की भांति जाना चाहिए तब लक्ष्मण जी रावण के पैर की तरफ़ जाकर बैठे किंतु पुनः रावण ने यह कहते हुए मुंह फ़ेर लिया किया जब भी किसी विद्वान से भेंट करने जाओ
तो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए तब कहते हैं लक्ष्मण जी वहीं भूमि से एक तिनका उठाकर महापंडित रावण को भेंट किया तब जाकर रावण ने लक्ष्मण को उपदेश दिया। कहने का तात्पर्य यह है कि हर कार्य की एक मर्यादा होती है; एक उचित तरीका होता है, उस मर्यादा से परे जाकर उस कार्य को करना मेरे देखे पाप करने जैसा है। विद्वानों को चाहिए कि महत्वपूर्ण कार्यों की मर्यादा एवं उचित मार्ग के संबंध में जनमानस को मार्गदर्शित करें।

-ज्योतिर्विद हेमन्त रिछारिया

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